Monday 24 September 2012

होंय भक्त बेहाल, मार डाले यह भगदड़ -

File:SabarimalaRush2010.JPG
मंदिर मठ मस्जिद मचे, भगदड़ हर इक साल ।
मौत-तांडव कर हते, होंय भक्त बेहाल ।

होंय भक्त बेहाल, मार डाले यह भगदड़ ।
चढ़े चढ़ावा ढेर, गिनें आयोजक रोकड़ ।

रहे प्रशासन मूक, चूक की जिम्मेदारी ।
देते सभी नकार, मुआवजा बटता  भारी ।

7 comments:

  1. एहतियात ज़रूरी है.

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  2. कई वर्षों से धार्मिक स्थलों में देश में भगदड़ की ढेरों घटनाएँ हो रही हैं और अनेक मासूम इन घटनाओं में मारे जा रहे हैं और सरकारें मूक होकर देख रही हैं और इन्हें रोकने में नाकाम रही है और इन घटनाओं से कोई सबक नहीं सीख रही हैं यह निहायत शर्मनाक है ..कम से कम इन्हें रोकने हेतु कोई कठोर कानून भी तो बनाया जाना चाहिए और दोषियों को सजा देना चाहिए ..

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  3. बहुत अच्छी कुंडलि।

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  4. बहुत बढ़िया सामयिक कुण्डलिया!

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  5. बहुत सुंदर !
    जिम्मेदारी सरकार
    ने उठानी चाहिये
    एक आने के लिये और
    एक जाने के लिये गली
    बनानी चाहिये !

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  6. मंदिर मठ मस्जिद मचे, भगदड़ हर इक साल ।

    मौत-तांडव कर हते, होंय भक्त बेहाल ।

    होंय भक्त बेहाल, मार डाले यह भगदड़ ।

    चढ़े चढ़ावा ढेर, गिनें आयोजक रोकड़ ।यही तो विडंबना है हमारे दौर की .यहाँ मिशिगन के गुरद्वारों में कहीं दिल्ली नर संहार (१९८४)के

    खून सने चित्र लगें हैं कहीं ओपरेशन ब्ल्यू स्टार के ---

    आतंकियों को बतलाया गया शहीद जरनैल सिंह ,शहीद फलाने सिंह .....सभी आतंकियों की इंदिरा जी के हत्यारों की तस्वीरें बड़े फ्रेम में

    मुखरित हैं .कैसा है यह गुरु का द्वारा (अखाड़ा ?).

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  7. @-माफ कीजिएगा पूंछ को सीधा करना मेरे बस की बात नहीं है- पूँछ-ताछ में आ गई, कैसे टेढ़ी पूँछ | शब्दों की यह कृपणता, हुवे हाथ क्या छूँछ | हुवे हाथ क्या छूँछ , करे यह कोई छूछू | मर्यादित व्यवहार, डंक तो मारे बिच्छू | वन्दनीय हे साधु, कर्म करते ही जाना | असहनीय यह डंक, किन्तु सच सदा बचाना || आधे सच का आधा झूठ पर
    सामग्री निकालें | हटाएं | स्पैम

    इस उत्साह वर्धन के लिए शुक्रिया .इस समय इसकी बहुत ज़रुरत थी .वैसे बरसों की साध रविकर जी आज पूरी हुई ,आज एक शख्श ने हमको गाली दी .कोलिज में पढ़ाते थे तो बड़ा तरसते थे कोई

    अफवाह उड़े हमें भी लेके .बड़ा खराब इमेज था सब पढ़ाकू ही समझते थे .कईयों को पैसे भी दिए भाई ये अफवाह हमारे बारे में उड़ा दो .पर अपना नसीब ऐसा कहाँ था .

    आज घर बैठे -बैठे "राम राम भाई " ने काम करा दिया .

    एक शैर याद आ रहा है -

    कितनी आसानी से मशहूर किया है खुद को ,

    मैंने आज अपने से बड़े शख्श को गाली दी है .

    वक्र मुखी का शुक्रिया .

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